Gulzar Shayari

गुलज़ार साहब एक महान लेखक हैं. उनके द्वारा लिखी शायरी, ग़ज़ल दिल को छू जाती है, यहाँ पर हमने ऐसी ही गुलज़ार साहब के द्वारा लिखी हुई कुछ लोकप्रिय शायरियों को एकत्रित किया है जो आपको बहुत पसंद आएँगी।

गुलज़ार जी भाषा उर्दू तथा पंजाबी हैं परन्तु उन्होंने  ब्रज भाषा, खङी बोली, मारवाड़ी और हरियाणवी में भी अपनी रचनाये लिखी जो आज भी काफी प्रचलित हैं. 


वर्ष 2009 में डैनी बॉयल द्वारा निर्देशित फिल्म स्लम्डाग मिलियनेयर में उनके द्वारा लिखे गीत “जय हो” के लिये उन्हे सर्वश्रेष्ठ गीत का ऑस्कर पुरस्कार मिल चुका है।  2002 में सहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 2004 में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसी गीत के लिये उन्हे ग्रैमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

गुलज़ार साहब ने अपनी कई किताबे भी लिखी –

  • चौरस रात (1962), 
  • जानम (1963), 
  • एक बूंद चांद (1972), 
  • रावी पार (1997), 
  • रात, चांद और मैं (2002), 
  • रात पश्मीने की और खराशें (2003)

Contents

Gulzar Quotes

कोई पूछ रहा है मुझसे मेरी जिंदगी की कीमत, मुझे याद आ रहा है तेरा हल्के से मुस्कुरादेना ।

तुमसे मिला था प्यार ,कुछ अच्छे नसीब थे , हम उन दिनों अमीर थे , जब तुम करीब थे। 

ज़रा ये धुप ढल जाए ,तो हाल पूछेंगे , यहाँ कुछ साये , खुद को खुदा बताते हैं। 

चांदी उगने लगी है बालों में , के उम्र तुम पर हसीन लगती है !

ज़ायका अलग सा है मेरे लफ़्ज़ों का, के कोई समझ नहीं पाता, कोई भूला नहीं पाता।

झूठे तेरे वादों पे बरस बिताये, ज़िन्दगी तो काटी, ये रात कट जाए।

ज़िन्दगी सस्ती है साहब, जीने के तरीके महंगे हैं।

कब आ रहे हो मुलाकात के लिए, मैंने चाँद रोका है एक रात के लिए.

तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं, रात भी आयी थी और चाँद भी था , हाँ मगर नींद नहीं।

इक ज़रा चेहरा उधर कीजिये, इनायत होगी आप को देख के, बड़ी देर से मेरी सांस रुकी है.

शर्त लगी है मर जाने की नीना है तो प्यार में देह कहीं भी हो मेरा, जान रखी है यार में।

दिल में कुछ जलता है शायद, धुआँ धुआँ सा लगता है। आँख में कुछ चुभता है शायद, सपना सा कोई सुलगता है।

Gulzar Shayari in Hindi

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कुछ अलग करना हो तो
भीड़ से हट के चलिए,
भीड़ साहस तो देती हैं
मगर पहचान छिन लेती हैं

इश्क़ की तलाश में
क्यों निकलते हो तुम,
इश्क़ खुद तलाश लेता है
जिसे बर्बाद करना होता है।

तुझ से बिछड़ कर
कब ये हुआ कि मर गए,
तेरे दिन भी गुजर गए
और मेरे दिन भी गुजर गए.

आऊं तो सुबह,
जाऊं तो मेरा नाम शबा लिखना,
बर्फ पड़े तो
बर्फ पे मेरा नाम दुआ लिखना

वो शख़्स जो कभी
मेरा था ही नही,
उसने मुझे किसी और का भी
नही होने दिया.

सालों बाद मिले वो
गले लगाकर रोने लगे,
जाते वक्त जिसने कहा था
तुम्हारे जैसे हज़ार मिलेंगे.

जब भी आंखों में अश्क भर आए
लोग कुछ डूबते नजर आए
चांद जितने भी गुम हुए शब के
सब के इल्ज़ाम मेरे सर आए

जिन दिनों आप रहते थे,
आंख में धूप रहती थी
अब तो जाले ही जाले हैं,
ये भी जाने ही वाले हैं.

जबसे तुम्हारे नाम की
मिसरी होंठ लगाई है
मीठा सा गम है,
और मीठी सी तन्हाई है.

वक्त कटता भी नही
वक्त रुकता भी नही
दिल है सजदे में मगर
इश्क झुकता भी नही

Reality Gulzar Quotes on Life

कमाल है बिखरे सब अंदर से हैं यहाँ और सँवार जिस्म को रहे हैं|

तंग नहीं करते हम उन्हें आज कल ये बात भी उन्हें तंग करती है|

हमेशा इतने छोटे बनो की हर व्यक्ति तुम्हारे साथ बैठ सके, और अपने कामों से इतना बड़ा बनो की जब तुम खड़े हो तो कोई बैठा न रहे|

जिंदगी ख़तम हो जाती है लोगों की पर लोग जीना शुरू नहीं कर पाते|

माना की जिंदगी में दिक्कतें कम नहीं पर कम से कम जीने को जिंदगी है क्या यही काफी नही।

मैंने अपनी जिंदगी के सारे महंगे सबक सस्ते लोगों से ही सीखें हैं|

आइना जब भी उठाया करो पहले देखो फिर दिखाया करो|

पलट कर जवाब देना बेशक गलत बक है लेकिन सुनते रहो तो लोग बोलने की हदें भूल जाते हैं|

जो शिकायत नहीं करते दर्द उन्हें भी होता है|

जिसे “मैं” की हवा लगी उसे फिर न दवा लगी न दुआ लगी|

कोई आपका हक़ तो छीन सकता है पर कोई आपके हक़ का नहीं छीन सकता

होंठों पे मुस्कान थी कंधो पे बस्ता था, सुकून के मामले में वो जमाना सस्ता था।

Gulzar Poetry

इस पोस्ट में कुछ बहुत ही लोकप्रिय Gulzar Poetry in Hindi का संग्रह दिया है उम्मीद है आपको यह Gulzar Poetry की पोस्ट पसंद आएगी। अगर आपको यह Gulzar Poetry in Hindi की पोस्ट अच्छी लगे तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे।

Gulzar Poetry Hindi – वक्त को आते न जाते न गुज़रते देखा!

वक़्त को आते न जाते न गुजरते देखा,
न उतरते हुए देखा कभी इलहाम की सूरत,
जमा होते हुए एक जगह मगर देखा है.
शायद आया था वो ख़्वाब से दबे पांव ही,
और जब आया ख़्यालों को एहसास न था.
आँख का रंग तुलु होते हुए देखा जिस दिन,
मैंने चूमा था मगर वक़्त को पहचाना न था.
चंद तुतलाते हुए बोलों में आहट सुनी,
दूध का दांत गिरा था तो भी वहां देखा,
बोस्की बेटी मेरी ,चिकनी-सी रेशम की डली,
लिपटी लिपटाई हुई रेशम के तागों में पड़ी थी.
मुझे एहसास ही नहीं था कि वहां वक़्त पड़ा है.
पालना खोल के जब मैंने उतारा था उसे बिस्तर पर,
लोरी के बोलों से एक बार छुआ था उसको,
बढ़ते नाखूनों में हर बार तराशा भी था.
चूड़ियाँ चढ़ती-उतरती थीं कलाई पे मुसलसल,
और हाथों से उतरती कभी चढ़ती थी किताबें,
मुझको मालूम नहीं था कि वहां वक़्त लिखा है.
वक़्त को आते न जाते न गुज़रते देखा,
जमा होते हुए देखा मगर उसको मैंने,
इस बरस बोस्की अठारह बरस की होगी.

अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो , कि दास्तां आगे और भी है!

अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं
अभी तो किरदार ही बुझे हैं.
अभी सुलगते हैं रूह के ग़म, अभी धड़कते हैं दर्द दिल के
अभी तो एहसास जी रहा है.
यह लौ बचा लो जो थक के किरदार की हथेली से गिर पड़ी है.
यह लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगूला बनकर,
यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रोशनी को लेकर,
कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे,
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!

Gulzar Poetry – किसी मौसम का झौंका था

किसी मौसम का झौंका था
जो इस दीवार पर लटकी हुई तस्वीर तिरछी कर गया है
गये सावन में ये दीवारें यूँ सीली नहीं थीं
न जाने इस दफ़ा क्यूँ इनमें सीलन आ गयी है
दरारें पड़ गयी हैं
और सीलन इस तरह बहती है जैसे
ख़ुश्क रुख़सारों पे गीले आँसू चलते हों
सघन सावन लायी कदम बहार
मथुरा से डोली लाये चारों कहार
नहीं आये केसरिया बलमा हमार
अंगना बड़ा सुनसान
ये बारिश गुनगुनाती थी, इसी छत की मुंडेरों पर
ये घर की खिड़कियों के काँच पर उंगली से लिख जाती थी संदेसे
बिलखती रहती है बैठी हुई अब बंद रोशनदानों के पीछे
अपने नयन से नीर बहाये
अपनी जमुना ख़ुद आप ही बनावे
दोपहरें ऐसी लगती हैं
बिना मोहरों के खाली खाने रखे हैं
न कोई खेलने वाला है बाज़ी
और ना कोई चाल चलता है
लाख बार उसमें ही नहाये
पूरा न होयी अस्नान
फिर पूरा न होयी अस्नान
सूखे केस रूखे भेस
मनवा बेजान
न दिन होता है अब न रात होती है
सभी कुछ रुक गया है
वो क्या मौसम का झौंका था
जो इस दिवार पर लटकी हुई तस्वीर तिरछी कर गया है

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